छोटे बच्चों की बड़ी परवाह! त्रिपुरा बना बाल अधिकारों का चैंपियन राज्य

Lee Chang (North East Expert)
Lee Chang (North East Expert)

पूर्वोत्तर भारत में त्रिपुरा ने बाल संरक्षण और कल्याण के क्षेत्र में मॉडल राज्य की पहचान बना ली है। मुख्यमंत्री माणिक साहा ने खुद इसका खुलासा प्रज्ञा भवन, अगरतला में आयोजित पूर्वोत्तर क्षेत्रीय बाल अधिकार सम्मेलन में किया।

44 बाल देखभाल संस्थान, 950 बच्चों को सुरक्षित आश्रय

राज्य में फिलहाल 44 बाल देखभाल संस्थान संचालित हो रहे हैं, जहां लगभग 950 बच्चों को आश्रय, भोजन और भावनात्मक समर्थन मिल रहा है। सभी 8 जिलों में विशेष किशोर न्याय ढाँचा पूरी तरह सक्रिय है।

कानूनी गोद लेने से 28 बच्चों को मिला परिवार

मुख्यमंत्री साहा ने बताया कि 2022 से 2025 के बीच, त्रिपुरा में 28 बच्चों को कानूनी गोद लेने के ज़रिए नया परिवार मिला। यह प्रक्रिया न केवल पारदर्शी रही, बल्कि बच्चों को प्यार और स्थिरता भी मिली।

“बच्चे छोटे वयस्क नहीं हैं; वे अपने आप में इंसान हैं।” – माणिक साहा

विशेष किशोर पुलिस इकाइयाँ और न्याय बोर्ड पूरे राज्य में एक्टिव

हर जिले में किशोर न्याय बोर्ड और बाल कल्याण समितियाँ काम कर रही हैं।

स्पेशल जुवेनाइल पुलिस यूनिट्स बच्चों से जुड़ी शिकायतों और मामलों को सेंसिटिविटी के साथ संभालती हैं।

बच्चों को अपराध के बजाय पुनर्वास के नजरिए से देखा जा रहा है।

प्रायोजन कार्यक्रम और समाज में पुनः शामिल होने की पहल

4200+ बच्चों को प्रायोजन योजनाओं से मिली आर्थिक और सामाजिक सहायता।

14 युवाओं को संस्थागत देखभाल से निकलने के बाद सफल री-इंटीग्रेशन मिला, यानी वे अब समाज का स्वतंत्र हिस्सा बन चुके हैं।

पोषण और स्वास्थ्य में भी त्रिपुरा आगे

जुलाई 2025 तक:

  • 2.29 लाख बच्चों ने लाभ लिया एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) और पोषण अभियान योजनाओं से।

  • फ़ोकस: सही पोषण, विकास निगरानी, और कुपोषण रोकथाम।

CM साहा का संदेश: “बच्चों की सुरक्षा सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी नहीं”

मुख्यमंत्री ने सम्मेलन में ज़ोर दिया कि:

“बच्चों की सुरक्षा केवल सरकारी योजनाओं तक सीमित नहीं हो सकती। इसके लिए परिवार, समुदाय और पूरे समाज की साझेदारी ज़रूरी है।”

उन्होंने बाल अधिकारों को समाज की रीढ़ की हड्डी बताते हुए कहा कि अगर हम बच्चों की उपेक्षा करते हैं, तो हम अपने भविष्य को खतरे में डालते हैं।

छोटे राज्य, बड़ी सोच!

त्रिपुरा का यह बहुआयामी मॉडल – जिसमें कानूनी गोद लेना, संस्थागत देखभाल, पुनर्वास, पोषण योजना, और बाल सुरक्षा कानूनों का कठोर क्रियान्वयन शामिल है – भारत के अन्य राज्यों के लिए एक प्रेरक मिसाल है।

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